जिंदगी
रोज दिन निकलता है
और शाम होती है
जिंदगी रफ्ता रफ्ता
यूँ तमाम होती है
सुख दुख के मेले हैं
और कई झमेले हैं
आदमी ने शदियों से
यही सब तो झेले हैं
कभी कभी खूब खास
कभी आम होती है
जिंदगी रफ्ता रफ्ता
यूँ तमाम होती है
कोई कहे ऐंसे जियो
कोई कहे वैसे जियो
जिंदगी विष व अमृत
कोई कहे ऐंसे पियो
भ्रम की इन बातों से
ही हराम होती है
जिंदगी रफ्ता रफ्ता
यूँ तमाम होती है