जिंदगी
हमे क्या मतलब इस भीड़ से कौन क्या उठा कर ले गए,
हम कौन सा तेरी शामों से रोशनी उठा कर ले गए |
आयी थी ज़रा सी बू बादशाह के मयखाने मे,
अमीर – ए – शहर गरीब का हुज़रा उठा कर ले गए |
क्या होगा हश्र – ए – ज़्यादती इस शहर का भला,
फूल ना उखड़ा तो चोर बगीचा उठा कर ले गए |
जिन को सहरा मे दिया छांव का सहारा,
वो ही हमराह पेड़ का सहारा उठा कर ले गए |
क्या ख़ाक फबेगी उन हुक्मरानों पर रेशमी शेरवानी,
गरीब की थाली से जो निवाला उठा कर ले गए |
जिन परिंदों की उड़ान को आसमां तक पहुँचाया हमने,
हमारे सर से ही बारिश का सहारा उठा कर ले गए |
इस जिंदगी के सफ़र मे और तुमसे क्या उठता |
जाते जाते बस हमसफ़र का दर्द उठा कर ले गए ||