जिंदगी है लापता
** जिंदगी है लापता (ग़ज़ल) **
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जिंदगी यारो सुना है ला’पता,
ना पता तेरा न ही खुद का पता।
मंजिलें भी अब नजऱ से दूर हैं।
ढूंढते हारे न कुछ मिलता पता।
है गया खो सा खुदी का घर पता।
ढूंढने निकले ज़रा उनका पता।
वो हुआ है इस कदर हमसे खफ़ा,
है बताया ही नहीं खुद का पता।
रात तारों से भरी सजती खूब है,
चाँद तो भी है अकेला क्या पता।
फूल मनसीरत खिले सुंदर लगे,
ये चमन क्यों है बुझा सा ना पता।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)