जिंदगी हर कदम आजमाती रही।
मैं सँभलता रहा ये गिराती रही।
जिंदगी हर कदम आजमाती रही।।
हर कोई साथ मेरा गया छोड़, पर।
मुफलिसी साथ मेरा निभाती रही।।
जब मुझे ये लगा भूल तुझको गया।
याद तेरी मुझे आ सताती रही।।
सिर्फ अपने भले के लिये ही यहाँ।
ये सियासत सभी को लडा़ती रही।।
जब तलक सो गया वो नहीं लाड़ला।
लोरियाँ माँ उसे बस सुनाती रही।।
चैन दिल को मिला ना सुकूं आ सका।
याद आती रही याद जाती रही।।
सरफिरे आशिकों की ही करतूत पर।
अश्क हर दिन मुहब्बत बहाती रही।।
जाति मजहब कभी धर्म के नाम पर।
रोज धरती लहू से नहाती रही।।
भूल जाने की जिद में मुझे वो वहाँ।
नाम लिखती रहो औ मिटाती रही।।
राह सबको दिखाने लगा जो यहाँ।
“दीप” वो ही हवा ये बुझाती रही।।
प्रदीप कुमार