जिंदगी सुनले
ऐ जिंदगी सुनले तू मुझसे, तू कितना मुझे सतायेगी ,
तेरी हसरत है मुझे रुलाने की तो सुन हसता हुआ मुझे पायेगी ,
बेशक खारों की डगर मिले, बेशक चट्टाने हो राहो मे
मै फिर भी मुस्काऊंगा तू जितना मुझे
सताएगी
माना की मेरी किस्मत है जो आज मुझी से रूठी है
ये शमशीरें भी मेरी है बेशक ये थोड़ी
टूटी है
आज लताएं सूखी हैं फूल भी है कुम्हलाए से
कल हवा का रुख फिर बदलेगा कल फिर से बहारें आयेंगी
कल फिर आयेंगे सुन्दर पंछी फिर कोयल कूक सुनायेगी
माना कि आज मै विखरा हूंँ अंधेरे रस्तो से गुजरा हूँ
इक दर्द दिया तो क्या गम है पर सच तो ये है आखें तेरी भी नम है
इक नयी सुवह फिर आयेगी, फिर छटेंगे सारे तिमिर यहा से
नव सुबह यहाँ मुस्कायेगी
अरुण कुमार “अरु”