जिंदगी समंदर सी बन गई मेरी
जिंदगी समंदर सी बन गई मेरी
चाहकर भी मैं निकल पाता नहीं
या कोई अनबुझ पहेली हो जैसे
सोचता हूं मगर समझ पाता नहीं
रास्ते इसमें हैं कंटीले बिहड़ जैसे
उलझा हुआ हूं निकल पाता नहीं
पर्वतों से शिखर ढलान तिखी है
कोशिशों से भी मैं चढ़ पाता नहीं
लोग सजाते हैं महफ़िलें रात भर
मेरा तन्हां दिल बहल पाता नहीं
सुना है जिंदगी बेवफा है’विनोद’
प्रेम कैसा फिर समझ पाता नहीं