जिंदगी सब कुछ कह जाती हैं
जिंदगी के उजियारों में ,
सत्ता के गलियारों में ।
ये लब कुछ कहे न कहे,
ख़ामोशी सब कुछ कह जाती हैं।
अपनी जिंदगी की ,
खुशिया लुटाये बैठे हैं।
अपने रंजो गम की
महफ़िल सजाये बैठे हैं।
फिर दिल कुछ कहे न कहे,
धड़कन सब कुछ कह जाती हैं।
देखी थी हमने जिसमे,
इश्क़-ए वफ़ा की मूरत,
बदला है मन भी उसका,
बदली हैं उसकी फ़ितरत।
हम कुछ कहे न कहे ,
ये दिल सब कुछ कह जाता हैं।
रूठी रूठी सी हैं जिंदगी,
रूठा-रूठा हैं हर लम्हा।
जिंदगी थमी सी लगती हैं,
हर पल भी लगता अब सहमा।
ये जुबां चुप रह जाती हैं,
पर आँखे सब कुछ कह जाती हैं।