**जिंदगी रेत का ढेर है**
**जिंदगी रेत का ढेर है**
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जिंदगी रेत का ढेर है,
कुछ वक्त का लगे फेर है।
सोचिये सोच में यूँ जरा,
हो न जाए कहीं देर है।
झाँकिये खुद गिरेबान में,
देखिये तो बहुत वैर है।
जो गिरें है उसे लो उठा,
यूँ के यूँ ही गिरे बेर हैँ।
शायरी से भरा मनसीरत,
आखिरी बार के शेर हैँ।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)