जिंदगी या सपना
मुझे कहीं ले चलो दूर
इन हवाओं से सहमी घटाओं से
नदी का किनारा हो
पहाड़ों का बसेरा हो ।
न हो किसी के खोने का डर
न हो किसी के रूठने का डर
प्यार ही प्यार हो जहाँ
इसरार बेशुमार हो जहाँ
बाँसुरी की तान हो
कृष्ण नाम की झंकार हो ।
प्रियतम का सुंदर संग हो
अदाओं का मस्त ढंग हो।
सूरज की लाली हो
चन्द्रमा की थाली हो
नजर जाए जहाँ तक आसमान
में तारों का घना कुहरा हो ।
न हो कभी आँसूओं का समंदर
प्यार बसा हो जहाँ दिलों के अंदर
बोलो ले चलोगे न मुझे
या छोड़ जाओगे तुम भी तन्हा
उन यादों की तरह
जो बसी हुई हैं मेरे दिल के कोने में
भुलाना चाहती हूँ पर भूल नहीं पाती
हँसना चाहती हूँ पर हँस नहीं पाती ।
कैद हूँ मैं जैसे किसी अजायबघर में
घुटन होती हो जैसे किराया घर मे
जानती हूँ तुम भी मुझे समझ कहाँ पाए
चलो छोड़ो जीवन को चलने दो यूँ ही
चींटी की चाल चलते हुए ,
इस जहाँ में कोई तो पड़ाव होगा ।
वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़