जिंदगी मैंने तुम पे वारी है।
गज़ल
2122…….1212……22
जिंदगी मैने तुम पे वारी है।
अब तो जो भी है सब तुम्हारी है।
अब तो बैठा हूँ तेरी राहों में,
तेरे सदके की बस तयारी है।
हँसते हँसते सदा कटी उनकी,
मैंने तो रो के ही गुजारी है।
कौन चाहेगा भूख से मरना,
फंदे तैयार इंतेजारी है।
जिसका सरकार कुछ न कर पाई,
मुफ़लिसी ऐसी ही बीमारी है।
मुफ़लिसी को मिटा सकें जड़़ से,
मुफ़लिसों की ही दी सुपारी है।
प्यार जिसने किया नहीं प्रेमी,
जिंदगी जी नहीं गुजारी है।
……✍️ प्रेमी