जिंदगी मेरी अर्पण वतन के लिये ।
ग़ज़ल
ज़िन्दगी मेरी अर्पण वतन के लिए ।।
जान जाये तो अरि के दमन के लिए ।।
सांस चाहे भले हो मिरी आखिरी ।
मै जिऊंगा निख़ालिश चमन के लिए ।।
लाख़ गर्दिश वहां चाहे वीरान हो ।
पर तिरंगा रहेगा क़फ़न के लिए ।।
देश की शान तो है मिरी जिंदगी ।
मैं मिटाता रहूं हर जनम के लिए ।।
एक दुश्मन सलामत रहेगा नही ।
चीर सीने को दूंगा करम के लिए ।।
वक्त आएगा रकमिश कभी तो तिरा ।
पैर पीछे ना जायें परन के लिऐ ।।
राम केश मिश्र