जिंदगी भी बिखरी पड़ी
नहीं कोई यहाँ अपनी डगर कोई
मौत का भी नहीं हमकों डर कोई
औरों की ख़ुशीयों पे ख़ुश हो लोग
ऐसे हालात ऐसे रह गये शहर नहीं
कभी मौत से आँखें नहीं चुराते हम
देखलो अपना दर्द दिल जिगर कोई
जिंदगी भी बिखरी पड़ी यहाँ पे यार
जैसे बिखरी हो ग़ज़ल की बहर कोई
सब कहतें हमदर्दी क्यों दिल मे तेरे
दूसरों के दुःख टूटा क्या कहर कोई
दर्द सहकर मुस्कराना आता हमकों
मेरे जैसा नहीं किसी पर हुनर कोई