जिंदगी बहु काम की
छंद-गीतिका
विधा-गीतिका (मापनीयुक्त)
२१२२ २१२२ २१२२ २१२
कीजिए सुंदर सफर यह जिंदगी बहु काम की।
छोड़कर झगड़े सकल अब बात कर निष्काम की।(1)
क्यों गंवाता वक्त को ये वक्त तो है कीमती,
बात तू यूॅ ही करेगा या करेगा काम की।।(2)
क्यों कराते राड़ दंगे कुछ तो अब ठंडक रखो,
छोड़ दो ये छद्म नाटक जिद्द छोड़ो जाम की।(3)
मर रहे हैं भूख से इंसान देखो आज भी,
खूब खाली रस मलाई बात कर आवाम की।(4)
सब्र अब कुछ तो रखो अनुरोध यह करता अटल,
बात से परहेज़ कर लो जो महज बेकाम की।(5)
अटल मुरादाबादी