Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
25 May 2021 · 1 min read

जिंदगी ना जाने किस मोड़ पर आ गई

जिंदगी ना जाने किस मोड़ पर आ गई है
जो कभी सुना नहीं देखा नहीं ऐसा कोरोनावायरस का कहर छाया हुआ है
रोजमर्रा की जिंदगी जैसे कहीं थम सी गई है
जो बस घर में ही कैद होकर रह गए हैं
सूरज कब निकलता है कब सूरज ढलता है जैसे अब कुछ पता ही नहीं
आज इंसान खुलकर हंसना तो जैसे भूल ही गया है
चेहरे पर जैसे चिंता और डर ही दिख रहा है
बाहर निकले लोगों से मिले जैसे एक अरसा हो गया है
उस जिंदगी को खुलकर जिए जैसे एक अरसा हो गया है
उस बिजी जिंदगीमें किसी के पास टाइम नहीं था
पर आज जिंदगी में टाइम तो है पर जिंदगी को डरडर के जिया जा रहाहै
जैसे कोई जिंदगी एक गहरा समुंदर हो गया है
जहां हम बस डूबते ही जा रहे हैं
ना जाने इस जिंदगी ने किस मोड़ पर ला खड़ा किया है!

** नीतू गुप्ता

Language: Hindi
3 Likes · 2 Comments · 342 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
बुद्ध फिर मुस्कुराए / मुसाफ़िर बैठा
बुद्ध फिर मुस्कुराए / मुसाफ़िर बैठा
Dr MusafiR BaithA
अब क्या बताएँ छूटे हैं कितने कहाँ पर हम ग़ायब हुए हैं खुद ही
अब क्या बताएँ छूटे हैं कितने कहाँ पर हम ग़ायब हुए हैं खुद ही
Neelam Sharma
भोर काल से संध्या तक
भोर काल से संध्या तक
देवराज यादव
कुछ ये हाल अरमान ए जिंदगी का
कुछ ये हाल अरमान ए जिंदगी का
शेखर सिंह
यक्ष प्रश्न
यक्ष प्रश्न
Shyam Sundar Subramanian
तेरे सांचे में ढलने लगी हूं।
तेरे सांचे में ढलने लगी हूं।
Seema gupta,Alwar
"कविता क्या है?"
Dr. Kishan tandon kranti
औरत अश्क की झीलों से हरी रहती है
औरत अश्क की झीलों से हरी रहती है
ब्रजनंदन कुमार 'विमल'
*पेड़ (पाँच दोहे)*
*पेड़ (पाँच दोहे)*
Ravi Prakash
चौपई /जयकारी छंद
चौपई /जयकारी छंद
Subhash Singhai
ऐ ज़ालिम....!
ऐ ज़ालिम....!
Srishty Bansal
*मुझे गाँव की मिट्टी,याद आ रही है*
*मुझे गाँव की मिट्टी,याद आ रही है*
sudhir kumar
खुद की तलाश में।
खुद की तलाश में।
Taj Mohammad
मेरी गुड़िया (संस्मरण)
मेरी गुड़िया (संस्मरण)
Kanchan Khanna
आप में आपका
आप में आपका
Dr fauzia Naseem shad
हमारी संस्कृति में दशरथ तभी बूढ़े हो जाते हैं जब राम योग्य ह
हमारी संस्कृति में दशरथ तभी बूढ़े हो जाते हैं जब राम योग्य ह
Sanjay ' शून्य'
निज धर्म सदा चलते रहना
निज धर्म सदा चलते रहना
सुशील मिश्रा ' क्षितिज राज '
#लाश_पर_अभिलाष_की_बंसी_सुखद_कैसे_बजाएं?
#लाश_पर_अभिलाष_की_बंसी_सुखद_कैसे_बजाएं?
संजीव शुक्ल 'सचिन'
बैठा हूँ उस राह पर जो मेरी मंजिल नहीं
बैठा हूँ उस राह पर जो मेरी मंजिल नहीं
Pushpraj Anant
आहुति  चुनाव यज्ञ में,  आओ आएं डाल
आहुति चुनाव यज्ञ में, आओ आएं डाल
Dr Archana Gupta
हर रात की
हर रात की "स्याही"  एक सराय है
Atul "Krishn"
त्योहार
त्योहार
Dr. Pradeep Kumar Sharma
मैं तो महज बुनियाद हूँ
मैं तो महज बुनियाद हूँ
VINOD CHAUHAN
ना जाने सुबह है या शाम,
ना जाने सुबह है या शाम,
Madhavi Srivastava
माता पिता के श्री चरणों में बारंबार प्रणाम है
माता पिता के श्री चरणों में बारंबार प्रणाम है
सुरेश कुमार चतुर्वेदी
आज नए रंगों से तूने घर अपना सजाया है।
आज नए रंगों से तूने घर अपना सजाया है।
Manisha Manjari
यूंही नहीं बनता जीवन में कोई
यूंही नहीं बनता जीवन में कोई
लक्ष्मी वर्मा प्रतीक्षा
दूसरों का दर्द महसूस करने वाला इंसान ही
दूसरों का दर्द महसूस करने वाला इंसान ही
shabina. Naaz
"गंगा माँ बड़ी पावनी"
Ekta chitrangini
■ चलते रहो...
■ चलते रहो...
*Author प्रणय प्रभात*
Loading...