जिंदगी ना जाने किस मोड़ पर आ गई
जिंदगी ना जाने किस मोड़ पर आ गई है
जो कभी सुना नहीं देखा नहीं ऐसा कोरोनावायरस का कहर छाया हुआ है
रोजमर्रा की जिंदगी जैसे कहीं थम सी गई है
जो बस घर में ही कैद होकर रह गए हैं
सूरज कब निकलता है कब सूरज ढलता है जैसे अब कुछ पता ही नहीं
आज इंसान खुलकर हंसना तो जैसे भूल ही गया है
चेहरे पर जैसे चिंता और डर ही दिख रहा है
बाहर निकले लोगों से मिले जैसे एक अरसा हो गया है
उस जिंदगी को खुलकर जिए जैसे एक अरसा हो गया है
उस बिजी जिंदगीमें किसी के पास टाइम नहीं था
पर आज जिंदगी में टाइम तो है पर जिंदगी को डरडर के जिया जा रहाहै
जैसे कोई जिंदगी एक गहरा समुंदर हो गया है
जहां हम बस डूबते ही जा रहे हैं
ना जाने इस जिंदगी ने किस मोड़ पर ला खड़ा किया है!
** नीतू गुप्ता