जिंदगी तो अब यह ही है
मन ने कर लिया स्वीकार,जिंदगी तो अब यह ही है
अब जोशे खून मद्धिम हो चला
जब जीबन अंत की और चला
एक धुंदली सी परछाई छोढ़ चला
अंतिम पढ़ाव पर कदम बढ़ चला
अब क्यों करूँ किसी का इंतजार
जब मन ने कर लिया स्वीकार
जिंदगी तो अब यह ही है
क्या पता कोई दिल पिघले ना पिघले
कोई साथ चले या ना चले
सूरज कंही डूब जाये साँझ तले
क्या पता अब मंजिल मिले ना मिले
अब क्यों करूँ किसी से मैं मनुहार
जब मन ने कर लिया स्वीकार
जिंदगी तो अब यह ही है
चंदा की चांदनी में पूनम की रात
झिलमिल तारों में रौशनी की सौगात
तपती धरा पर गिरे अगर बरसात
आशाओं की कई ऐसी अनगिनत बात
बीते लम्हों से हारा,कैसे कंरू मन को तैयार
जब मन ने कर लिया स्वीकार
जिंदगी तो अब यह ही है
जो लढ़ाई मैंने लढ़ी
यातनाओं के बंधन की ऐसी थी कढ़ी
हर पल निराशा और छटपटाहट बढ़ी
भाग्य फल की बातें केवल किताबों में पढ़ी
झेलते झेलते आ गया जीबन के अंतिम द्वार
तब मन ने कर लिया स्वीकार
जिंदगी तो अब यह ही है
क्या भरोसा मिट्टी का घरोंदा
सूखे बंजर खेत का कोमल सा पौदा
हिसाब के खाते में लिखा घाटे का सौदा
अनबुझी पहेली सा सुलझे यदा कदा
समझोता करूँ कैसे जिंदगी से बारबार
अब मन ने कर लिया स्वीकार
जिंदगी तो अब यह ही है
सजन