जिंदगी तेरे कई रंग
जिंदगी तेरे कई रंग,
अजब तेरा अनोखा ढंग,
कभी रुलाया,कभी हँसाया,
कभी शूलों पर चलाया,
बार बार कभी हराया,
तोड़ कर हर’मैं’ का बंधन,
निश्छल,निर्मल सदा बनाया।
कभी दी रुलाई,
कभी जग हँसाई,
कभी आशाओं की किरण,
कभी हतासा की परछाई,
पर सीखाती रही तू,
हर पल चलना,
हर पल मुस्काना,
मुश्किलों में मुस्काना,
बनाती रही,
हर पल सशक्त,
ढालती रही मुझे,
एक कुम्भकार बन,
और ढलती रही मैं,
तेरी हर सांचे को,
कर स्वीकार,
बस बनती रही मैं,
बस तपती रही,
पाने एक सुयोग्य आकार,
तेरी हर परीक्षा को कर स्वीकार,
वाकई जिंदगी,
तेरे हर रंग निराले मिले,
कभी तपते अंगारों से छाले मिले,
पर सीख गई चलना,
गहन तुफानो में,
एक आशा बन जलना।।
दीपाली कालरा