जिंदगी जीने के सिर्फ़
जिंदगी जीने के सिर्फ इतने जज़्बात
वापिस सौलह वाले हो जाये लम्हात
बुढ़ापे में तो दांत भी नहीं चलते यारों
दुश्मन की जरूरत नहीं बुढ़ापा जो साथ
काश वो बचपन का होमवर्क मिल जाये
वो कागज़ की कश्ती के लिये हो बरसात
सौलह से जवानी में सत्रहवां शुरू हुआ
शायरी की हो गई, फ़िर अपनी शुरुआत
काश की वो उम्र का चालीसवां साल आये
जब बीबी बच्चे ना हो माशूक से आखँ लड़ात
वो फुरसत के बेफिक्री वाले दिन थे अपने
अब बढ़ती उम्र करती हमसे कुछ सवालात
वो दादी दादी की कहानियां और योगा हो
फ़िर से जवानी वापिस आये ये है ख्यालात
वो जवानी की लपटें दिल मे उमड़ते शोले से
60 साल की उम्र में कहाँ रही जवानी की बात
ऐ जमीं अब तू लपेट दे मुझपर अपनी चादर
या आसमाँ वाले दे मुझे वही मेरे फ़िर हालात
फ़िर से बड़ो का आश्रीवाद मिल जाये मुझकों
तो हो जाये मेरी जवानी वाले दिनों से मुलाक़ात
अशोक सपड़ा हमदर्द की क़लम से दिल्ली से