जिंदगी जियो
जिंदगी पर लिखो नहीं
जिंदगी जियो
मैंने देखा हैं लोग जिंदगी पे लिखते बहुत
पर खुद जिंदगी असल में जी पाते नहीं
कहते है बहुत सजती है तुम पे मुस्कुराहट
फिर पता नहीं क्यों,खुद मुस्कुराते ही नहीं
सब जानते है फिक्र से कुछ नहीं होने वाला
फ़िर इस फिक्र को सीने से हटाते ही नहीं
सब राख में मिल जाना है इक दिन
ये समझ के भी अमल में लाते ही नहीं
जोड़ते है पैसा रुपया क्यों इतना मेरे यारों
दुआयों के सिवा कुछ साथ ले जाते नहीं
सपनों की तामीरदारी बहुत करते है ये
पर सपनो को हकीकत से रूबरू कराते नहीं
लोग क्यों है इतने उलझें उलझें से यारों
इनके ओर,छोर समझ आते ही नहीं
यूं तो बहुत गम है बताने को मगर
मुझको लोगों को बताने आते ही नहीं
मुस्कुरा देती हुं दोस्तों की गंभीरता पर यारों
कुछ लोग समझ आकर भी समझ आते नहीं
दीपाली अमित कालरा