*जिंदगी के हाथो वफ़ा मजबूर हुई*
जिंदगी के हाथो वफ़ा मजबूर हुई
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जिंदगी के हाथों वफ़ा मज़बूर हुई,
यूँ जमाने भर में जफ़ा मशहूर हुई।
रोज ही तुमने तो सताया है बहुत,
यूँ गमों मे जल कर दुखों से नूर हुई।
हूँ खड़ी अब भी मुश्किलों की घड़ी,
आम ख्यालों से भी बहुत ही दूर हुई।
ये भरा मन भी खोखला भावों बिना,
रहगुज खाली सी खुशी भरपूर हुई।
ढूंढता मनसीरत सदा संगी साथ हो,
साँझ सी तन्हाई दिलों की हूर हुई।
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सुखविन्द्र सिंह मनसीरत
खेडी राओ वाली (कैथल)