जिंदगी के रंग
ज़िन्दगी के रंग
जिन्दगी हर लम्हां रंग बदलती है।
कभी खुशी कभी ग़म में ढलती है।।
कभी रोती है, हँसती है, कभी चुप रहती है।
रुकती है, ठहरती है, गुज़रती है कभी चलती है।।
तड़पती है, तरसती है, बिखरती है कभी।
कभी गिरती है, उठती है, और सभँलती है।।
बिगड़ती है, बनती है, सँवरती है कभी।
कभी खुश्बू-खुश्बू फिज़ाओं में खिलती है।।
ग़म के बादल में छुप जाती है कभी।
और कभी चाँद बन के निकलती है।।
राज़ समझा है कौन जिन्दगी का ‘नाज़’।
सुबह होती है जब रात ढलती है।।