जिंदगी के रंग
हौसलों की डोर से उड़ती जिंदगी की पतंग
बे रंग जिंदगी में भी छिपे होते हैं कुछ रंग
कुछ रंग गगन है छोड़ता, सावन के बरसातों में
कुछ रंग नाचते गाते ,आते होंगे बारातों में
कुछ रंग भरने आ जाते हैं मेरे गाँव वाले
कुछ रंग जिंदगी में भरते हैं मित्र हमारे
कुछ रंग जिंदगी में भरते हैं चित्र पुराने
कमी है कुछ और नही एक बात कहना चाहता हूँ
शहर की ज़िंदगी छोड़ में अपने गाँव नवापुरा में रहना चाहता हूँ
में अपने गाँव नवापुरा की गोदी ने सोना चाहता हूँ
बादलों के साथ आज में भी रोना चाहता हूँ
बना था इंद्रधनुष के सात रंगों से ये मेरा बचपन
फिक्र ना थी किसी की, नादान,भोला था मेरा मन
साथ खेलतीं प्रकृति, पेड़-पौधे और गिलहरी
में नादान परिंदा था पर आज जिंदगी को
सँवारने के लिए बन गया शहरी
समय के साथ चलना भी जरूरी था
समय से द्वंद्व भी करना जरूरी था
पर समय कब और किस के लिए रुका हैं
खेल-खेल में ही सही पर वो समय बीत चुका है
विपदाएँ आती रही हैं और आती रहेगीं………..!
सन्नाटों में कोयल युही गाती रहेंगी…………….!!
मौलिक एवं स्वरचित
शंकर आँजणा नवापुरा धवेचा
बागोड़ा जालोर-343032