जिंदगी की शाम
जिंदगी की शाम जब ढलती है
ये रूह जिस्म नया बदलती है
चरागों को एहसास हो जाता है
जब हवाएं उठ कर चलती है
आँखें बुझ गयी इंतजार में मगर
दिल में उम्मीद की शम्मा जलती है
में कैसे भूल जाँऊ उसका पता
मेरी हर गली जहाँ निकलती है
उड़ गये हसरतो के तमाम परिंदे
इस दिल में अब उदासी पलती है
अजीब पहेली है ये जिंदगी भी
सुलझाने से और उलझती है
हमारी बेबस आँखों पर कान्हा
नींदे दूर खड़ी हँसती है