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17 Jun 2021 · 1 min read

जिंदगी की रेस में, स्वप्न हुए हैं दफन!

थके थके हैं नयन,
भूल चुके हैं शयन।
जिंदगी की रेस में,
स्वप्न हुए हैं दफन।

बिना ताप अग्नि के,
जल रहा है बदन।
बिना अश्रु धार के,
मन कर रहा रूदन।

बिना वायु वेग के,
चल रहा है मन।
अगिनत विचारों से,
खुद को किया दफन।

बिना शीतल हुए,
बर्फ बन रहे हैं हम।
घोर बारिश में भी,
बहुत जल रहे हैं हम।

तरु के नीचे है और,
छाहँ को भटकते हम ।
बृक्ष काट काट कर,
प्राणवायु को तरसते हम।

दिनकर की रोशनी में,
अंधकार पाते हम।
‘दीप’ स्वमं होते हुए,
तलाशते प्रकाश हम।

जिंदगी की रेस में,
स्वप्न हुए हैं दफन।

-जारी
-©कुल’दीप’ मिश्रा

Language: Hindi
4 Likes · 2 Comments · 343 Views
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