जिंदगी की जंग
जीवन की सच्चाई से
मानव मन की गहराई से
उतर पारखी नजर से देखा,
हर एक आदमी
कहीं न कहीं जूझ रहा हैं
जिंदगी की जंग में
बेहताशा भागें भीड़ की ओर,,,
और अपनों से छूट रहा है।
ज़ख्म है, रिस रहा लहू
मरहम कहां से लाएं??
एकाकी जीवन में
नितान्त अकेला दुखड़ा किससे बतलाएं।
भरा हो अर्थ अनन्त
सुविधाओं से भी सम्पन्न
मीत, मित्र का भी संग
सरपट भागती जिंदगी में
फिर भी रीता ही रह गया मन।
-सीमा गुप्ता अलवर राजस्थान