जिंदगी का दौर
ढल जाती हैं जिंदगी
ढलते सूरज की तरह।
ज्यों हो अगवानी चांद की
एक नई जिंदगी की तरह।
जिंदगी के काफिले से,
निशान मिट जाते हैं।
संघर्ष कर किसी तरह
जो मंजिल पा जाते हैं।
हर जिंदगी खुद में
होती बहुत अहम है
मेरे बाद होगा कैसे
बहुत बड़ा भरम है।
मानस पटल पर बिखरी
आकृति जिंदगी की।
मिटाता है वक्त झट से
अस्तित्व जिंदगी की।
कोई न याद करता
हमसफर था जिंदगी में।
सब देखते हैं मंजिल
खुद की ही जिंदगी में।
ये कारवां सफर का
चलता ही यूं रहेगा।
हम रहें या न रहें
ये सफर नहीं थमेगा।
भागीरथ प्रसाद