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5 Mar 2017 · 1 min read

जिंदगी का अजीब सफर

जिंदगी का भी अजीब सफर है,
न है वक़्त का पता न ही कोई सीधी डगर है,
पता ही नहीं कितनी दूर तक चलते जाना है,
कहाँ होगी मंजिल कहाँ ठिकाना है,
रब जाने इस रात की कब शहर (सुबह) है,
जिंदगी का भी अजीब सफर है,
जहां हो जाये सांझ चलते चलते वहीँ डेरा ज़माना है,
रात को किसी अनचाहे ख्वाब की तरह बिताना है,
न जाने कितना गहरा ये जीवन का भवर है,
जिंदगी का भी अजीब सफर है,
सारा वक़्त यूं ही अपनों की तलाश में गवाना है,
मगर दूर दूर तक कुछ हाथ नहीं आना है,
अपनी ही मंजिल पे न जाने कैसा ये डर है,
जिंदगी का भी अजीब सफर है,

Language: Hindi
631 Views
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