जिंदगी एक पहेली
जिंदगी एक पहेली
कल भी थी, आज भी है
और शायद कल
भी रहेगी,
जितना इसे सुलझाने
की कोशिश होगी
यह और भी उलझेगी,
परेशान करेगी
और शायद यह
पहेली कभी भी हल
नहीं होगी।
जानता हूँ फिर भी
पता नहीं क्यों इसे हल
करने में लगा हूँ ,
जी-जी कर न जाने
कितनी बार मरा हूँ
पर, फिर भी
कभी नहीं डरा हूँ।
लम्बे अतीत से अबाध
जारी यह चक्र कब
तलक चलेगा ,
यह सुलझेगा या
और भी उलझेगा
क्या कोई मुझे इसका
समाधान बताएगा ?
यह जीवन-मरण
हार जीत, सफलता
और असफलता, आशा
और निराशा का दौर
कब समाप्त होगा,
इस जीवन का अर्थ
हमें कब पता चलेगा।
जीवन में कब आएगा
ठहराव,
या यूं ही होता रहेगा
इसका अनचाहा
बिखराव।
इन सभी से मुक्ति
की कामना
रही है निर्मेश ,
बड़े ही सुकून व शांति
से जीना चाहता हूँ
जीवन के दिन
जो बचे है अब शेष।
निर्मेश