जिंदगीनामा
जिंदगीनामा
तपती गर्मी
झुलसता शरीर, और
पावों में पड़े छाले भी!
मन को सुकून देते हैं ;
जब शाम ढले
मेहनत के बटुऐ में
खुशियां,
अठखेलियाँ करती हैं!
कम-बसर जिंदगी भी
उलाहनों का समंदर है!
नाचीज़ रोटियाँ भी
कमबख्त, जब
हाथों से फिसल जाती हैं!
दिन का आगाज
उसपर,
अंतर्मन की घुटन, और
संताप की ज्वाला!
यह फिक्रमंद दिल, फिर
जार जार रोता है!
यथावत,
अनुत्तरित यक्ष-प्रश्न!
और, झंझावतों के कोहरे में ;
अदृश्य परिदृश्य!
पूर्जे-पूर्जे कटती जिंदगी,
जैसे; पल पल पन्ने पलटती
जिंदगीनामा!
© अनिल कुमार श्रीवास्तव