जिंदगीनामा
फ़ैसला करिये अब कोई तत्काल नहीं,
मेरा क़त्ल हुआ है कोई इंतक़ाल नहीं,
दुनिया भरम में है वो आदिल रहा मेरा,
बात मुक़म्मल हो ऐसे तो अल्फ़ाज़ नहीं।
कामिले दुनिया तेरे दर पे जो स्याह मिली,
आब-ए-तल्ख़ में वैसी तो आवाज़ नहीं,
खामोश रहा मैं बस इस वफ़ा के साथ,
क़ातिल का मेरे बीच कोई इम्तियाज नहीं।
बंदिशें तोडूं मग़र एज़ाज़ कहाँ होता है,
उकूबत का अदालत में कोई इलाज नहीं,
शख्स से कह दो जरा क़दमों की कद्र करे,
ख़लिश की कयामत से वो भी आबाद नहीं।