जा रे पाथर
जा रे पाथर
तोरि किस्मत पर जाऊँ वारी,
मंदर में बने तों गुसाईं
नवावे माथ या दुनिया सारी।
देव दीन्हा घात बिसवास का
पाथर बनी अहिला बिचारी,
आस तके बरसों संग तुमरे
आवेंगे कबहुँ तारनहारी।
ओह बड़भागी पाथर!
हाथ लगौ सों रघुरारी,
बनों सूत सम तैरन लागै
हलको बने तुम भारी।
पाथर पर रखके पाथर
ऊँची बनी महल अटारी,
ऐंठ-ऐंठ मत परियो रे भाई,
वरना जावै बात बिगारी।
पाथर से बन डटियो रे नर
डगमग कदम न डारी,
आवे बिकट समै जब भी
अड़ जाैं नाम लेत गिरधारी।
सोनू हंस