जा मैं नहीं जाता
यादों के घर में लोचा है
कोई बात कोई ख्यालात टिक कर रह नहीं पाता
इक ये तेरे चश्म के शो’बदे हैं
जो कहता है जा मैं नहीं जाता
तेरी तस्वीर से लिपटे कभी रोते कभी हंसते है
हीज़्र और वस्ल इक साथ के मज़े दे देते हैं
जो कहता है हॅंस कर जा मैं नहीं जाता
सहर भर के छत पे सो गए हैं चांद सितारे
इक मेरा ही चश्म ए बाम ए नींद है
जो डट कर कहता है जा मैं नहीं आता
~ सिद्धार्थ