जाड़े की धूप
जाड़े की धूप
जाड़े की धूप का आश्वासन और गर्मजोशी ,किसको नहीं भाती।
किन्तु शर्माती है ,जाड़े की धूप ,और जल्दी चली जाती है.छोड़ कर ठिठुरन।
उद्दंड हुए बादल , सौम्य हुए सूरज को घेरकर बार बार ढक देते हैं। कभी कई कई दिन उसे कैद में रख लेते हैं। मौसम कंपकपाता है और सोचता है,’सूरज का इतना नम्र होना भी शायद ठीक नहीं।
– र र