जालियांवाला बाग
रक्तरंजित जब बाग हुआ था
हाहाकार पुर जोर हुआ था
बचाने थे अपने अधिकार
जमा हुए थे हजारों हजार
हर ओर से घिरा था बाग
निकलने की थी एक ही राह
अंग्रेजों के कुकृत्य फिर से
क्रीड़ा कर गए थे रक्त से
बच्चे,बूढ़े और जवान
याचक बन महिलाएं भी थीं उसी स्थान
फिर खून की प्यासी उनकी गोलियां
लील गईं कितनो की जिंदगियां
कल्पना करें हम उस दृश्य की
रोंगटे खड़े हो जाएंगे अवश्य ही
जान बचाने को भाग रहे थे सभी
पर राह था एक ही, वो भी थीं भरी
कैसे वो भयानक दृश्य रहे होंगे
जब उस कुवें में सभी कूद गए होंगे
कूआं भर गईं लाशों से
मैदान लाल हो गईं रक्तों से
बच्चों संग शिशु देश के लाल थे
इस कुकृत्य के साक्षी जालियांवाला बाग थे