जायेगा ये पर…..
जायेगा ये पर….
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जायेगा ये पर….
थोड़ा तांडव मचाके !
मानेगा ये पर….
सबको वैक्सीन लगवाके !!
प्रभावित कर रहा ये ,
जगत की दिशा को !
बेहाल कर रहा ये ,
इंसानों की दशा को !!
चोट पहुॅंचा रहा ये ,
हमारी अर्थव्यवस्था को !
पंगु बना रहा ये ,
शिक्षण – व्यवस्था को !!
ध्यान भटका रहा ये ,
पूरी शासन-सत्ता का !
खुद में ही लगवा रहा ये ,
श्रम, देश की जनता का !!
शिथिल बना रहा ये ,
कार्य करने की क्षमता को !
बेरोजगार बना रहा ये ,
देश की करोड़ों जनता को !!
जायेगा ये पर….
थोड़ा तांडव मचाके !!
दुरुपयोग हो रहा….
चिकित्सा सुविधा का !
अव्यक्त ही रह रहा….
सबके मन की व्यथा का !!
दम घुट सा रहा….
घर में बंद रह-रह के !
बचपन बीता जा रहा….
ख़ौफ़ से डर-डर के !!
बहुत ध्यान रह रहा….
हर घर में खान-पान का !
अति परेशान रह रहा….
रिश्तेदार, जान-पहचान का !!
देश ये काॅंप रहा….
कोरोना के कहर से !
बुरी ख़बर आ रहा….
शहर – दर – शहर से !!
जायेगा ये पर….
थोड़ा तांडव मचाके !!
अनाथ बन रहे….
कितने सारे मासूम बच्चे !
सुहाग छीन रहे….
सुहागिन महिलाओं के !!
खूब मदद मिल रही….
दूर देश अमेरिका की !
प्रगाढ़ता बढ़ रही….
देशों में मित्रता की !!
समझ नहीं आ रहा….
लक्षण ये कोरोना का !
सबकुछ बदल रहा….
मौसम ये दुनिया का !!
खूब शोध किया जा रहा….
कोरोना संबंधी इलाज़ का !
पूर्ण सफल नहीं हो पा रहा….
प्रयास किसी शोध-संस्थान का !!
जायेगा ये पर….
थोड़ा तांडव मचाके !!
स्वरचित एवं मौलिक ।
© अजित कुमार कर्ण ।
किशनगंज ( बिहार )