जायदाद
माँ बाप काम में तल्लीन, संयुक्त परिवार में सब अपनी अपनी जिम्मेदारी निभाने में व्यस्त रहते हुए एक अच्छा जीवन व्यतीत करते रहे.
मेरी नजर में परिवार ने जैसे अकेले गोवर्धन पर्वत उठा रखा हो,काम को किसी ने बोझ नहीं समझा,
मेरे दादाजी दो भाई काफी बडी जमीन के वारिस, दोनों की शादी हो गई, समय के फेर में छोटे दादा जी चल बसे, काम की अधिकता के कारण, छोटी दादी जी को घर ही रख लिया गया,
बडी दादी को एक लडका दो लडकियों को जन्म देकर स्वर्ग सिधार गई,
छोटी दादी के हम बेटे है, जो तेरे दादा जी और दादी जी तुम देख रहे हो,
हमेशा खुश रहते है, इनकी खुशी का कारण, हम सब उनकी संतानें है,
जो जिम्मेदारी से गृहस्थ जीवन का अनुपालन अनुशासित तरीके से जी रहे है,
समय करवटें बदलता हैं, मेरी परदादी चल बसी, मेरे दादाजी का भी स्वास्थ्य ठीक नहीं चल रहा था,
मेरे पिताजी के परदादा के समय की जो संयुक्त जमीन थी, मेरे दादाजी के एक भाई और तीन बहनों के नाम संयुक्त रूप से थी,
वो और जो दादा जी ने खरीद की थी,
उसमें दोनों दादियों की संतानों के बीच बराबर बंटवारे को लेकर, विवाद तो नहीं, खींचतान जैसे सबके दिल में एक अलचल सी रखती हो,
कहानी की असल शुरुआत होती है, अब ..
किसने की गलती, और कहां हुई भूल
एक ओर दादा जी और उनकी तीन बहन, दूसरी और दो दादियों की संतानें,
एक ओर एक लड़का और दो बहन
दूसरी ओर चार भाई.
घर की बात से घर पर बन आई.
खिलती फुलवारी, गोवर्धन पर्वत जैसा बीड़ा उठा कर चलने वाला परिवार.
एक बार फिर हाशिये पर.
प्रगति रुक गई.
बात वहीं की वहीं खडी है,
सब अपने अपने बच्चों के साथ खुश है,
इकलौता बेटा, प्रभावी वा प्रभारी रहा है, समयानुसार विचलित्ता /त्याग //समर्पण बढते-घटते रहता है.
एक अकेले बेटे ने, न बंटवारे किये,
चारो भाईयों को विचलित रखा,
कोई न कोई घरेलू पहलू छोडकर
अपनी चाल चल देता,
खुद दूर बैठे देखता,
विशेष:-
*कहानी में समय बलवान है.
*निर्णय सही नहीं लिए गये,
*दादा जी कपटी थे,
*वे शिक्षित परिवार है, खुद पार पा लेगा, वाली बात पर भरोसा.
*किस मोड पर ले आया.
Renu Bala M.A(B.Ed.)