जापानी छंद : कतौता
प्रदीप कुमार दाश “दीपक”
Katauta : कतौता
01.
धरा की थाती
निर्मल प्राण वायु
यही दीप की बाती ।
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02.
देहरी दीप
गूंजी जो किलकारी
दादी दादा हर्षित ।
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03.
माँ की मुस्कान
मेरा जीवन गान
वेद-गीता-कुरान ।
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04.
व्यूह में फँसी
भारतीय जनता
मानो टूटा पहिया ।
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05.
साधोगे लक्ष्य
रखो विहग दृष्टि
होगी उमंग वृष्टि ।
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06.
परी कहानी
देख न पायी जग
रही बेटी अजन्मी ।
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07.
जलती बत्ती
बलात्कार सहती
निर्भया सिसकती ।
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08.
छिना सहारा
बूढ़ी आँखें बेकल
जीवन आज हारा ।
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09.
नन्हा सा दिया
मिटाता अंधकार
रखना ऐतबार ।
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10.
मन दर्पण
आँखों का समन्दर
अश्रु की कतरन ।
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प्रदीप कुमार दाश “दीपक”
साहित्य प्रसार केन्द्र साँकरा
जिला – रायगढ़ (छत्तीसगढ़)
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