जाने हो कब मयस्सर
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1972 में बैंगलोर में लिखी गई
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जाने कब हो मयस्सर दीदार लखनऊ का
इकरार लखनऊ का इसरार लखनऊ का
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एहसास उनको क्या हो शामे अवध की जन्नत
देखा नहीं जिन्होने बाज़ार लखनऊ का
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एक मोड़ पर किसी से मिलने की बेकरारी
याद आया मुझको वो दर हर बार लखनऊ का
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हर पल किसी के आने का, इंतज़ार करना
हमको रुला गया है इज़हार लखनऊ का
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जो हमको भूल बैठे उनको बता दे कोई
हम ख्वाब देखते हैं हर बार लखनऊ का
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किसको खबर की हमने कैसे गुज़रे ये दिन
छाया था रूह पर वो गुलज़ार लखनऊ का
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उनको खबर ही क्या हो क्या गम-ए-लखनऊ है
जिनको हुआ नहीं है आजार लखनऊ का
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कहने को आ गए हम एक अजनबी शहर में
लाये है साथ अपने हम प्यार लखनऊ का
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माना की इस चमन में हरसू बहार ही है
नाज़ुक यहाँ के गुल से हर खार लखनऊ का.
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डॉक्टर //इंजीनियर
मनोज श्रीवास्तव