जान को मेरी….
??? ग़ज़ल ???
बह्र – 212 – 212 – 212 – 212
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जान को मेरी अब यूँ निकालो न तुम।
आज सीने से मुझको लगा लो न तुम।
गश न आए मुझे जब हो तुम रूबरू।
इस क़हर से ख़ुदारा बचा लो न तुम।
देखकर के तुम्हें देखती रह गयी।
ये नज़र थोड़ा नीचे झुका लो न तुम।
हर तरफ हर जगह है तिरा अक्स ही।
गफलते जिंदगी को सम्भालो न तुम।
रूह की घाटियों में समाते हुए।
जिंदगी की भँवर से निकालो न तुम।
कश्मकश हो गयी है मिरी जिंदगी।
ज़ख्म भरने का मल्हम निकालो न तुम।
तेज अहसास मुझको करें बावली।
दिल मिरा अपने दिल से मिला लो न तुम।
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© तेजवीर सिंह ‘तेज’✍