जान की बाजी
दिलाई जान की बाजी नहीं
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हुई तुम से खता माफ़ी नहीं,
मिली है मौत पर फांसी नहीं।
बड़ी थी शौहरत जो खाक है,
सुनाई जो सजा काफ़ी नहीं।
खुदा बख्शा पिटारा रूप का,
परी सी सुंदरी दासी नहीं।
खिला यौवन भरी खुश्बू बलां,
किया ना पाप हम पापी नहीं।
मिटा दी साख दे कर दाग से,
खुई है आबरू यारी नही।
मिलाया हाथ मनसीरत कभी,
दिलाई जान की बाज़ी नहीं।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)