जाने है किस बात का , इतना बड़ा गुरूर।
जाने है किस बात का , इतना बड़ा गुरूर।
शरमाई हठधर्मिता , लोकतंत्र बेनूर । ।
लोकतंत्र बेनूर , हो रहीं मन की बातें ।
उधर कृषक मजबूर , खुले में काटें रातें ।
है स्वभाव की बात , कह गए लोग सयाने ।
खग की सारी बात , सदा से खग ही जानें ।।
सतीश पाण्डे