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6 Oct 2024 · 1 min read

जाने जां निगाहों में

***गज़ल*****
बह्र 221 1222 221 1222
*******************************

बादल भी उठे हो शायद आज फिजाओ में।
क्यों एक नमी लगती फिर आज हवाओं में।*0*

उठती हे कसक गहरे जाने जां निगाहो में।
इक दर्द उबरता है इस दिल की कराहो में। 1

दुनियां में कहाँ मिलता सुख चैन बिना ठोकर।
छपती हे सभी बातें बस एक किताबों में।*2*

लड़ती है यहाँ दुनियां दो जून की रोटी पर।
मिलती है कहाँ रोटी गैरों के निवालों में।*3*

बतलादो यहां शासन दलदल के सिवा क्या है।
उलझी है जहां सत्ता चहुँ और दलालो में।*4*

बदलो तो जमाना भी जायेगा बदल पल में।
निकलो तो सही लेकिन सुलझन के उजालों में। 5

कब कौन यहां किसका होता है सगा बोलो।
उलझे है सभी देखो सब अपने सवालो में।*6*

कलम घिसाई

धुन… इन आंखों की मस्ती ……

Language: Hindi
17 Views
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