जाने जां निगाहों में
***गज़ल*****
बह्र 221 1222 221 1222
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बादल भी उठे हो शायद आज फिजाओ में।
क्यों एक नमी लगती फिर आज हवाओं में।*0*
उठती हे कसक गहरे जाने जां निगाहो में।
इक दर्द उबरता है इस दिल की कराहो में। 1
दुनियां में कहाँ मिलता सुख चैन बिना ठोकर।
छपती हे सभी बातें बस एक किताबों में।*2*
लड़ती है यहाँ दुनियां दो जून की रोटी पर।
मिलती है कहाँ रोटी गैरों के निवालों में।*3*
बतलादो यहां शासन दलदल के सिवा क्या है।
उलझी है जहां सत्ता चहुँ और दलालो में।*4*
बदलो तो जमाना भी जायेगा बदल पल में।
निकलो तो सही लेकिन सुलझन के उजालों में। 5
कब कौन यहां किसका होता है सगा बोलो।
उलझे है सभी देखो सब अपने सवालो में।*6*
कलम घिसाई
धुन… इन आंखों की मस्ती ……