जाने क्यों,!
?️जाने क्यों?️
आज के मौसम में जाने
धांधली कैसी मची है
कोयलें सिर पीटती
कव्वों की पनाह में पड़ी हैं
अर्थ का अनर्थ हुआ
शब्द की रूठी कड़ी है
अहम ओढे ताज है
और
साधना सूनी खड़ी है।
संधियाँ टूटी हैं
आज ज़िंदगी की
विग्रह की ज़ाज़म यहाँ
बिखरी पड़ी है।
क्या हुआ है
ज़िंदगी के व्याकरण को
स्नेह,आदर,प्रेम की
सब मात्रा टूटी पड़ी हैं।
रोशनी शर्मा
चरखी दादरी।