जाने क्यों?
जाने क्यों उनकी बात से, मुझे पहुँचती ठेस।
बात बात में वो मुझे, जब देते उपदेश।
घर केवल मुझ से चले, मैं लाता हूँ कैश।
मैं तेरे जैसा नहीं, घर में करता ऐश ।।
आग उगलता आदमी,ज्यों दानव का भेष।।
जाने क्यों उनकी बात से, मुझे पहुँचती ठेस।।
दिन भर घर में बैठकर, करती हो आराम।
खाना खाती मुफ्त में, नहीं चुकाती दाम।।
रही निकम्मी आलसी,क्या जीतेगी रेस।
जाने क्यों उनकी बात से, मुझे पहुँचती ठेस।।
कई बार मैं सोचती,कोई करूँ उपाय।
जिससे मेरे पास हो, अपना कोई आय।।
इस घर को मैं छोड़ दूँ, आता है आवेश।
जाने क्यों उनकी बात से, मुझे पहुँचती ठेस।।
-लक्ष्मी सिंह
नई दिल्ली