जाने क्यों
ऐसा इस जमाने का हुआ अंदाज जाने क्यों
पहले एक था पर बंट गया है आज जाने क्यों
सदा अच्छा ही होता है मोहब्बत का यहां अंजाम
तो फिर नफरतों का हो गया आगाज जाने क्यों
अभी से भी न चेती तो बिखर जाएगी ये दुनिया
कोई सुनता नहीं है वक्त की आवाज जाने क्यों
गुनाहें होतीं हैं अक्सर यहां पर खास लोगों से
हमेशा आमलोगों पर ही गिरता गाज जाने क्यों
मोहब्बत वालों ने जीती है पलभर में यहां दुनिया
तो फिर शमशीर वालों को मिला है ताज जाने क्यों
नए फैशन के रंगों ने सलीकों पर किया कब्जा
यहां से खो गए शर्मोहया और लाज जाने क्यों
विक्रम कुमार
मनोरा, वैशाली