जाने क्यों लोग सब अरमान जला देते है
जाने क्यों लोग सब अरमान जला देते हैं ।
इश्क में हम तो दिलों जान लुटा देते हैं।
शान वाले हैं जो करते हैं तेरा शुक्र अदा ।
हम इबादत में तेरे सर को झुका देते हैं।
हमको मतलब नहीं कमज़र्फी से आलाज़र्फी से ।
जो वफ़ा करते हैं हमसे हम वफ़ा देते हैं ।
हमको लगते हैं जमाने में वह फरिश्ता सिफ़त।
रोती आंखें जो तबस्सुम से हंसा देते हैं।
जब निकलते हो गली से मेरे सज धज कर वो।
जिस्म और जान में वह आग लगा देते हैं।
इतनी दीवानगी है अपने मुल्क के खातिर ।
वतन की आन पर खून अपना बहा देते हैं।
यह मेरा दिल है खिलौना नहीं जागीर नहीं।
हम जिसे चाहते हैं उस को जगह देते हैं।
अपनी मिट्टी से हमें इतनी मोहब्बत है सगीर।
मुल्को मिल्लत के लिए जान गवा देते हैं।
डॉक्टर सगीर अहमद सिद्दीकी खैरा बाजार बहराइच