जाने क्या क्या छूटेगा
सब कुछ अपना छूट गया है छूट गई लरिकाइं भी
बचपन जिसके साथ गुजारा छूट गया वो भाई भी
माँ का प्यारा आँचल छूटा छूट गई अँगनाइ भी
पोखर ताल तलैय्या छूटे छूट गई अमराई भी
क्या क्या छूटा क्या बतलाऊँ रोजी रोटी पाने में
अपनी सारी दौलत छूटी दो सिक्कों को कमाने में
बहना बिन है सुनी कलाई डाक से राखी आती है
सारे रिश्ते पास हैं लेकिन हम तन्हा हैं ज़माने में
बीवी बच्चों का एक छोटा सा संसार बचा है बस
जब से अपना गाँव है छूटा इतना प्यार बचा है बस
लेकिन ये भी तब तक है जब तक वो शिक्षा पाते हैं
मेरा उनपर पढ़ने तक ही तो अधिकार बचा है बस
कल को वो भी पढ़ लिखकर जब अपने रस्ते जाएंगे
फिर अपना दामन खाली होगा हम तन्हा रह जाएंगे
जाने क्या क्या छूटेगा फिर खुद के विकसित होने में
हम होली ईद दिवाली पर भी शायद ही मिल पाएंगे