जाने किस बात से वो
रब जाने किस बात से वो हर रोज बदलते जाते हैं
इसी गम मे डूबे रहते हैं इसी सोंच में टूटे जाते हैं
कासिद से जो शाम-ओ-सहर सलामती लेते थे अपनी
क्यूँ अब वो वो न रहे क्यूँ मिलने से कतराते हैं
ये चाल है मेरे रकीबों की सारी दुनियां को मालूम
वो इतने भोले तो नहीं जो कुछ भी समझ नहीं पाते हैं
अफसोस भरोसे का अपने अपनो ने कत्लेआम किया
न शिकवा ही करते बनता है न आँसू ही बहाये जाते हैं
M.Tiwari”Ayen”