जाने कितनी बार गढ़ी मूर्ति तेरी
जाने कितनी बार गढ़ी मूर्ति तेरी
तेरी अर्चना कर तुझमें प्राण प्रतिष्ठा की
किन्तु नहीं समझ पाई थी अब तक
तेरी मूर्ति गढ़ना, फिर अर्चना
फिर प्राण प्रतिष्ठा के बाद विसर्जन
के पीछे का तात्पर्य ।
पर आज समझ आ रहा है
भाव इस अर्चन विधि का।
जब भी तुझे पाने की ललक जाग उठे,
तो तेरे ही जगत के तत्वों से
तुझे मनचाहा रूप देकर
तेरी उपासना, अर्चना करते हुए
तुझमें ही एक लय होकर
अपने ही प्राणों की प्रतिष्ठा
कर देनी है तुझमें ।
नर नारायण की प्रतिष्ठा ।
किन्तु इस छवि में भी बंधे नहीं रहना
विसर्जित कर देनी है वो
स्व प्राण प्रतिष्ठित मूर्ति
पूर्ण समर्पण के साथ
उसकी सत्ता में ही विलय हो जाना है ।