जाने कहां वो दिन गए फसलें बहार के
जाने कहां वो दिन गए फसले बहार के।
हम इंतजार में रहे,बस तेरे प्यार के।
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छोड़ा है तुमने जिस्म कहाँ रुह उड़ गई।
खामोश हो गए हैं तुम्हें सब पुकार के।
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ये शहर जल रहा है किसी के बयान से।
हैं लफ्ज़ लफ्ज़ चर्चे, किसी इश्तिहार के।
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उम्मीद से तुम्हारी तरफ देख रहे हैं।
ये जानवर भी भूखे हैं केवल दुलार के।
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आंखों में है थकान बदन चूर चूर है।
आए हो तुम कहां से यूंँ रातें गुजार के।
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उलझी है पेंचो खम में, मेरी जिंदगी सनम।
मिलता सुकून है तेरी जुल्फें संवार के।
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मुश्किल बहुत “सगी़र” तेरे बिन है जिंदगी।
दिल को है कुछ सुकून मगर सदके यार के।
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मुश्किल बहुत “सगीर” सफर जिंदगी का है। चलकर है कुछ सुकून मगर साथ यार के।
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Dr, Sagheer Ahmad Siddiqui